संसार का हर इंसान भटक रहा है।
नये नये धर्मो के निर्माण और ,
मैं ही श्रेष्ठ की दौड में ,
सही विचारों को कुचल रहा है।
धर्म क्या है ?
कौन है इसका रचयिता ,
सारा ही भ्रम निर्माण हुआ पडा है।
धर्म के झगडे मे सभी खडे अव्वल है।
लेकिन धर्म छोडा गर वैदिक ,
सारे ही पथदर्शक पंथ है।
धृति क्षमा दमोस्तेयं शौच इंद्रियनिग्रह: ।
धीर्विध्या सत्यं अक्रोधो दसक धर्म लक्षणम।।
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