यह प्रथम वेद ॠग्वेद का पहला मंत्र है। वेद की महत्ता हमे इस पहले मंत्र से ही ज्ञात हो जाती है। अग्नि के बगैर यज्ञ संभव ही नहीं चाहें वह दान आहूती यज्ञ हो जिससे धन की शुद्धी होती है या पाचन यज्ञ जो जठर अग्नि द्वारा होता है।
अर्थात:
हे अग्निरुप परमात्मा इस यज्ञ के द्वारा मैं आपकी आराधना करता हूं। सृष्टी के पूर्व भी आप थे और आपके अग्नि रूप से ही सृष्टी की रचना हुई । हे अग्नि रूप परमात्मा आप सब कुछ देने वाले हो। आप प्रत्येक समय एवं ऋतु मे पुज्य है। आप ही अपने अग्निरुप से जगत् के सब जीवो को सब पदार्थ देने वाले है एवं वर्तमान और प्रलय मे सबको समाहित करने वाले है । हे अग्निरुप परमात्मा आप ही सब उत्तम पदार्थ को धारण करने एवं कराने वाले है।
आपको शत शत वंदन
जयतु वेदम्
वेद आनंदम् परिवार
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