'वेदानां साम वेदोsस्मि' कहकर गीता उपदेशक ने सामवेद की गरीमा को प्रकट किया है।
यो तो वेद के सभी मंत्र अनुभूतिजन्य ज्ञान के उदघोषक होने के कारण लौकिक एवं आध्यात्मिक रहस्यो से लबालब भरे है, लेकिन सामवेद की विशेषता के कारण गीता ज्ञान को प्रकट करने वाले ने यह कहा कि ' वेदों मे मैं सामवेद हूं'।
शब्दों द्वारा अभिव्यक्ती की तीन धाराएं है - गद्य , पद्य एवं गान। ज्ञान की किसी भी धारा को इन्हीं माध्यमों से व्यक्त किया जाता रहा है। कोई भी देश-काल हो अभिव्यक्ती के माध्यम यही रहे है।
गद्य की अपेक्षा पद्य में भाव-संयोग एवं उभार की क्षमता अधिक पाई गयी है। पद्य को जब गान विद्या से जोडा़ गया तो भावना का प्रवाह अधिक पूर्णता से खुला इस तथ्य को सभी जानते है।
जब वेद के पद्यबद्ध मंत्रो को लयबद्ध गान विद्या से अनुप्राणित किया गया तो 'सामवेद' बन गया।
प्रकृती की हर कृति मे संगीत है, और संगीत से मानव जीव को शांति प्राप्त होती है। यही शांति जीवन को सरल बनाती है।
वेद याने दिव्य साक्षात्कार से अद्भुत ज्ञान। यहा 'दिव्य साक्षात्कार से अद्भुत ज्ञान' इन शब्दो पर चिंतन करने पर धर्म संबंधित सारे भ्रम मिट जाएंगे। इस आधार पर 'वेद' कोई पुस्तक नहीं, ज्ञान की एक विशिष्ट परिष्कृत धारा है, तो सामवेद को मंत्रो का एक संग्रह न कहकर ज्ञान की अभिव्यक्ती की एक विशिष्ट विधा ही कहा जा सकता है।
इसलिए ज्ञान एवं भावना का युग्म ही परमात्म साक्षात्कार का सुनिश्चित आधार है।
जब ज्ञान और विवेक जागृत रहता है तो वह ईर्ष्या, द्वेष , छल-कपट से परे हो जाता है। यही हमे वेदों से प्राप्त होता है।
वेद आनंदम् पर आप संपूर्ण वैदिक संस्थाओ में चलने वाले वैदिक ज्ञान-विज्ञान को प्रवचनों और स्वाध्यायों के माध्यम से देख और श्रवण कर सकते हैं।
इति शुभम
ॐ
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