उर्ध्वमूलमध:शाखम्, अश्वत्थं प्राहुरव्ययम।
छन्दांसि यस्य पर्णानि, यस्तं वेद स वेदवित्।। १ ।।
(भगवद्गीता अध्याय १५)
यहाँ पर भौतिक जगत का वर्णन उस अश्वत्थ वृक्ष के रूप में हुआ है जिसकी जडे़ उर्ध्वमुखी और शाखाऍ अधोमुखी है। देखने मे यह विरोधाभास लगता है,लेकिन यदि कोई नदी या जलाशय के किनारे खडा होकर जल मे वृक्ष का प्रतिबिंब देखे तो उसे वह वृक्ष उलटा दिखेगा, जिसकी शाखाएं नीचे की ओर और जडे़ उपर की ओर दिखेंगी। इसी प्रकार यह भौतिक जगत मी आध्यात्मिक(वास्तविक) जगत का प्रतिबिंब है। जैसे मरूस्थल मे जल नहीं होता,लेकिन मृगमरीचिका बताती है कि जल जैसी कोई वस्तु होती है। अगर वास्तविकता आध्यात्म है तो प्रतिबिंब भी आध्यात्म ही होना चाहिए क्योंकि आध्यात्म जगत मे वास्तविक सुख रुपी जल(अमृत) है।
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