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कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्मा: सनातना:। धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्रमधर्मोऽभिभवत्युत।।३९।। (भगवद्गीता)

कुल का नाश होने पर सनातन कुल-परम्परा नष्ट हो जाती है और इस तरह शेष कुल भी अधर्म मे प्रवृत्त हो जाता है।

वर्णाश्रम व्यवस्था मे धार्मिक परम्पराओं के अनेक नियम है जिनकी सहायता से परिवार के सदस्य ठीक से उन्नती करके आध्यात्मिक मूल्यों की उपलब्धि कर सकते हैं। परिवार मे जन्म से लेकर मृत्यू तक के सारे संस्कारो के लिये वयोवृद्ध लोग उत्तरदायी होते है। किंतु इन वयोवृद्धों की मृत्यु के पश्चात संस्कार संबंधी पारिवारिक परम्पराएं रूक जाती है और परिवार के जो तरूण सदस्य बचे रहते हैं वे अधर्ममय व्यसनों में प्रवृत्त होने से मुक्ति- लाभ से वंचित रह सकते हैं। अंत: किसी भी कारणवश परिवार के वयोवृद्धों के संस्कारो का वध नहीं होना चाहिए।

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