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ईशावास्योपनिषद्

अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्येवा आप्नुवन् पूर्वमर्षत्।

तद्धावतोsन्यानत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति ।।४।।


व्याख्या:

वे सर्वान्तर्यामी सर्वशक्तिमान परमेश्वर अचल और एक है, तथापि मन से भी अधिक तीव्र वेगयुक्त है। जहाॅ तक मन की गति है,वे उससे भी कही आगे पहले से ही विद्यमान है। मन तो वहाॅ तक पहुंच ही नहीं पाता। वे सबके आदि और ज्ञान स्वरूप है अथवा सबके आदि होने के कारण सबको पहले से ही जानते है,पर उनको देवता और महर्षि गण भी पूर्ण रूप से नहीं जान सकते। जितने भी तीव्र वेगयुक्त बुद्धी,मन,और इंन्द्रियाॅ अथवा वायु देवता है,अपनी शक्ति से परमेश्वर के अनुसंधान मे सदा दौड लगाते रहते है, परंतु परमेश्वर नित्य अचल रहते हुए ही उन सबको पार करके आगे निकल जाते है। वे वहां तक पहुंच ही नही पाते। असीम की सीमा का पता असीम को कैसे लग सकता है,बल्कि वायु आदि देवताओं मे जो शक्ति है,जिसके द्वारा वे जलवर्षण,प्रकाश प्राणि-प्राणधारण आदि कर्म करने में समर्थ होते है, वह इन अचिनत्यशक्ति परमेश्वर की शक्ति का एक अंश मात्र ही है। उनका सहयोग मिले बिना ये सब कुछ भी नहीं कर सकते ।।४।।

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